अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है
आज कुछ बात है जो शाम पे रोना आया
- शकील बदायूंनी
अब रात की दीवार को ढाना है ज़रूरी
ये काम मगर मुझ से अकेले नहीं होगा
- शहरयार
नफ़रत के ख़ज़ाने में तो कुछ भी नहीं बाक़ी
थोड़ा सा गुज़ारे के लिए प्यार बचाएँ
- इरफ़ान सिद्दीक़ी
हमेशा हाथों में होते हैं फूल उन के लिए
किसी को भेज के मंगवाने थोड़ी होते हैं
- अनवर शऊर
उस को हँसता देख के फूल थे हैरत में
वो हँसती थी फूलों की हैरानी पर
- अम्मार यासिर मिगसी
मैं ने क़ुबूल कर लिया चुप चाप वो गुलाब
जो शाख़ दे रही थी तिरी ओर से मुझे
- चराग़ शर्मा
Urdu Poetry: तुम से बिछड़ कर ज़िंदा हैं जान बहुत शर्मिंदा हैं