अमर उजाला, काव्य डेस्क, नई दिल्ली
दिल की बस्ती पुरानी दिल्ली है
जो भी गुज़रा है उस ने लूटा है
- बशीर बद्र
मैं बहुत ख़ुश था कड़ी धूप के सन्नाटे में
क्यूँ तिरी याद का बादल मिरे सर पर आया
- अहमद मुश्ताक़
जंगल जंगल आग लगी है दरिया दरिया पानी है
नगरी नगरी थाह नहीं है लोग बहुत घबराए हैं
- जमील अज़ीमाबादी
आग जंगल में लगी है दूर दरियाओं के पार
और कोई शहर में फिरता है घबराया हुआ
- ज़फ़र इक़बाल
Urdu Poetry: दिलों में हुब्ब-ए-वतन है अगर तो एक रहो