अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
अब इन हुदूद में लाया है इंतिज़ार मुझे
वो आ भी जाएँ तो आए न ए'तिबार मुझे
- ख़ुमार बाराबंकवी
तमाम जिस्म को आँखें बना के राह तको
तमाम खेल मोहब्बत में इंतिज़ार का है
- मुनव्वर राना
मुझे ये डर है दिल-ए-ज़िंदा तू न मर जाए
कि ज़िंदगानी इबारत है तेरे जीने से
- ख़्वाजा मीर दर्द
तन्हाई के लम्हात का एहसास हुआ है
जब तारों भरी रात का एहसास हुआ है
- नसीम शाहजहाँपुरी
Urdu Poetry: तुम ने देखा नहीं आँखों का समुंदर होना