अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
धीमे सुरों में कोई मधुर गीत छेड़िए
ठहरी हुई हवाओं में जादू बिखेरिए
- परवीन शाकिर
खनक जाते हैं जब साग़र तो पहरों कान बजते हैं
अरे तौबा बड़ी तौबा-शिकन आवाज़ होती है
- अज्ञात
ख़त्म हो जाएगा जिस दिन भी तुम्हारा इंतिज़ार
घर के दरवाज़े पे दस्तक चीख़ती रह जाएगी
- ताहिर फ़राज़
इंसान का दिल क्या है दुनिया-ए-हवादिस में
टूटा हुआ तारा है टपका हुआ आँसू है
- सय्यद बशीर हुसैन बशीर
Urdu Poetry: दुनिया अगर यही है तो दुनिया से बच के चल