Urdu Poetry: चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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दिया ख़ामोश है लेकिन किसी का दिल तो जलता है
चले आओ जहाँ तक रौशनी मा'लूम होती है
- नुशूर वाहिदी  

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कुछ इस तरह से गुज़ारी है ज़िंदगी जैसे
तमाम उम्र किसी दूसरे के घर में रहा
- अहमद फ़राज़ 

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मीर' अमदन भी कोई मरता है
जान है तो जहान है प्यारे
- मीर तक़ी मीर

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दिल अभी पूरी तरह टूटा नहीं
दोस्तों की मेहरबानी चाहिए
- अब्दुल हमीद अदम

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Urdu Poetry: किसी ना-ख़्वांदा बूढ़े की तरह ख़त उस का पढ़ता हूँ

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