अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
इरादे बाँधता हूँ सोचता हूँ तोड़ देता हूँ
कहीं ऐसा न हो जाए कहीं ऐसा न हो जाए
- हफ़ीज़ जालंधरी
ये किस अज़ाब में छोड़ा है तू ने इस दिल को
सुकून याद में तेरी न भूलने में क़रार
- शोहरत बुख़ारी
इक मुअम्मा है समझने का न समझाने का
ज़िंदगी काहे को है ख़्वाब है दीवाने का
- फ़ानी बदायूंनी
अरे ओ आसमाँ वाले बता इस में बुरा क्या है
ख़ुशी के चार झोंके गर इधर से भी गुज़र जाएँ
- साहिर लुधियानवी
ढलेगी शाम जहाँ कुछ नज़र न आएगा
फिर इस के बाद बहुत याद घर की आएगी
- राजेन्द्र मनचंदा बानी
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
- फ़िराक़ गोरखपुरी
Urdu Poetry: यूँ तो हर शाम उमीदों में गुज़र जाती है