अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
जाने वाले से मुलाक़ात न होने पाई
दिल की दिल में ही रही बात न होने पाई
- शकील बदायूंनी
टूट पड़ती थीं घटाएँ जिन की आँखें देख कर
वो भरी बरसात में तरसे हैं पानी के लिए
- सज्जाद बाक़र रिज़वी
वो दिल ले के ख़ुश हैं मुझे ये ख़ुशी है
कि पास उन के रहता हूँ मैं दूर हो कर
- जलील मानिकपुरी
घर की वहशत से लरज़ता हूँ मगर जाने क्यूँ
शाम होती है तो घर जाने को जी चाहता है
- इफ़्तिख़ार आरिफ़
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