Urdu Poetry: तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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तमाम उम्र ख़ुशी की तलाश में गुज़री
तमाम उम्र तरसते रहे ख़ुशी के लिए
- अबुल मुजाहिद ज़ाहिद    

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अपने चेहरे से जो ज़ाहिर है छुपाएँ कैसे
तेरी मर्ज़ी के मुताबिक़ नज़र आएँ कैसे
- वसीम बरेलवी

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शाम को तेरा हँस कर मिलना
दिन भर की उजरत होती है
- इशरत आफ़रीं 

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ख़ुद-बख़ुद राह लिए जाती है उस की जानिब
अब कहाँ तक है रसाई मुझे मालूम नहीं
- मोहम्मद आज़म

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एक सीता की रिफ़ाक़त है तो सब कुछ पास है
ज़िंदगी कहते हैं जिस को राम का बन-बास है
- हफ़ीज़ बनारसी

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आरज़ू-ए-विसाल तेरे लिए
दिल नहीं हारा जान हारी है
- रियाज़ शाहिद

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कौन कहता है कि मौत आई तो मर जाऊँगा
मैं तो दरिया हूँ समुंदर में उतर जाऊँगा
- अहमद नदीम क़ासमी

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Urdu Poetry: पलट न जाएँ हमेशा को तेरे आँगन से

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