अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
किसी ना-ख़्वांदा बूढ़े की तरह ख़त उस का पढ़ता हूँ
कि सौ सौ बार इक इक लफ़्ज़ से उँगली गुज़रती है
- अतहर नफ़ीस
ऐश ही ऐश है न सब ग़म है
ज़िंदगी इक हसीन संगम है
- अली जवाद ज़ैदी
दिलों को तेरे तबस्सुम की याद यूँ आई
कि जगमगा उठें जिस तरह मंदिरों में चराग़
- फ़िराक़ गोरखपुरी
शहर के अंधेरे को इक चराग़ काफ़ी है
सौ चराग़ जलते हैं इक चराग़ जलने से
- एहतिशाम अख्तर
Urdu Poetry: गँवाई किस की तमन्ना में ज़िंदगी मैं ने