Urdu Poetry: चुप बैठने से हल नहीं होने का मसअला

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली  

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हिम्मत है तो बुलंद कर आवाज़ का अलम
चुप बैठने से हल नहीं होने का मसअला
- ज़िया जालंधरी 

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कौन कहे मा'सूम हमारा बचपन था
खेल में भी तो आधा आधा आँगन था
- शारिक़ कैफ़ी 

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इक रात वो गया था जहाँ बात रोक के
अब तक रुका हुआ हूँ वहीं रात रोक के
- फ़रहत एहसास 

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मिरा ख़त उस ने पढ़ा पढ़ के नामा-बर से कहा
यही जवाब है इस का कोई जवाब नहीं
- अमीर मीनाई

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Urdu Poetry: देखे हैं बहुत हम ने हंगामे मोहब्बत के

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