Urdu Poetry: ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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पत्थर के जिगर वालो ग़म में वो रवानी है
ख़ुद राह बना लेगा बहता हुआ पानी है
- बशीर बद्र

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फिर कहीं बैठ के पी जाए इकट्ठे चाय
फिर कोई शाम का पल साथ गुज़ारा जाए
- ईमान क़ैसरानी

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अब इस घर की आबादी मेहमानों पर है
कोई आ जाए तो वक़्त गुज़र जाता है
- ज़ेहरा निगाह

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हुए नामवर बे-निशाँ कैसे कैसे
ज़मीं खा गई आसमाँ कैसे कैसे
- अमीर मीनाई

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Urdu Poetry: ऐ आसमान मैं भी कभी आफ़्ताब था

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