अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
दिल में वो भीड़ है कि ज़रा भी नहीं जगह
आप आइए मगर कोई अरमाँ निकाल के
- जलील मानिकपुरी
जैसा मूड हो वैसा मंज़र होता है
मौसम तो इंसान के अंदर होता है
- अज़ीज़ एजाज़
भीड़ के ख़ौफ़ से फिर घर की तरफ़ लौट आया
घर से जब शहर में तन्हाई के डर से निकला
- अलीम मसरूर
हार हो जाती है जब मान लिया जाता है
जीत तब होती है जब ठान लिया जाता है
- शकील आज़मी
Urdu Poetry: उस को छुट्टी न मिले जिस को सबक़ याद रहे