Urdu Poetry: आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली 

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मेरी रुस्वाई के अस्बाब हैं मेरे अंदर
आदमी हूँ सो बहुत ख़्वाब हैं मेरे अंदर
- असअ'द बदायूंनी 

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हम ने काँटों को भी नरमी से छुआ है अक्सर
लोग बेदर्द हैं फूलों को मसल देते हैं
- बिस्मिल सईदी

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हवा ख़फ़ा थी मगर इतनी संग-दिल भी न थी
हमीं को शम्अ जलाने का हौसला न हुआ
- क़ैसर-उल जाफ़री

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सफ़र में ऐसे कई मरहले भी आते हैं
हर एक मोड़ पे कुछ लोग छूट जाते हैं
- आबिद अदीब 

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Urdu Poetry: उस की आँखों में उतर जाने को जी चाहता है

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