Urdu Poetry: मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें

अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली  

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मुझ को अख़बार सी लगती हैं तुम्हारी बातें
हर नए रोज़ नया फ़ित्ना बयाँ करती हैं
- बशीर महताब 

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तुम फिर उसी अदा से अंगड़ाई ले के हँस दो
आ जाएगा पलट कर गुज़रा हुआ ज़माना
- शकील बदायूंनी 

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अंजाम-ए-वफ़ा ये है जिस ने भी मोहब्बत की
मरने की दुआ माँगी जीने की सज़ा पाई
- नुशूर वाहिदी

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जंग तो ख़ुद ही एक मसअला है
जंग क्या मसअलों का हल देगी
- साहिर लुधियानवी

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Urdu Poetry: वो सो गया है मुझे ख़्वाब से जगाते हुए

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