अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
अब तो उन की याद भी आती नहीं
कितनी तन्हा हो गईं तन्हाइयाँ
- फ़िराक़ गोरखपुरी
इक सफ़ीना है तिरी याद अगर
इक समुंदर है मिरी तन्हाई
- अहमद नदीम क़ासमी
हम ने सीने से लगाया दिल न अपना बन सका
मुस्कुरा कर तुम ने देखा दिल तुम्हारा हो गया
- जिगर मुरादाबादी
वो अफ़्साना जिसे अंजाम तक लाना न हो मुमकिन
उसे इक ख़ूब-सूरत मोड़ दे कर छोड़ना अच्छा
- साहिर लुधियानवी
Urdu Poetry: कि तू नहीं था तिरे साथ एक दुनिया थी