अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली
बाक़ी है अब भी तर्क-ए-तमन्ना की आरज़ू
क्यूँकर कहूँ कि कोई तमन्ना नहीं मुझे
- आदिल असीर देहलवी
इधर फ़लक को है ज़िद बिजलियाँ गिराने की
उधर हमें भी है धुन आशियाँ बनाने की
- अज्ञात
असरार अगर समझे दुनिया की हर इक शय के
ख़ुद अपनी हक़ीक़त से ये बे-ख़बरी क्यूँ है
- असद मुल्तानी
Urdu Poetry: ये नाव कौन सी है ये दरिया कहाँ का है