Hindi Shayari: माशूका की 'अदाओं' पर कहे गए शेर

अमर उजाला

Tue, 21 October 2025

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पूछा जो उन से चाँद निकलता है किस तरह 
ज़ुल्फ़ों को रुख़ पे डाल के झटका दिया कि यूँ 

~ आरज़ू लखनवी
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पहले इस में इक अदा थी नाज़ था अंदाज़ था 
रूठना अब तो तिरी आदत में शामिल हो गया 

~ आग़ा शाएर क़ज़लबाश

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आफ़त तो है वो नाज़ भी अंदाज़ भी लेकिन 
मरता हूँ मैं जिस पर वो अदा और ही कुछ है 

~ अमीर मीनाई

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अदा से देख लो जाता रहे गिला दिल का 
बस इक निगाह पे ठहरा है फ़ैसला दिल का 

~ असद अली ख़ान क़लक़

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गुल हो महताब हो आईना हो ख़ुर्शीद हो मीर 
अपना महबूब वही है जो अदा रखता हो 

~ मीर तक़ी मीर
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दुश्मन के घर से चल के दिखा दो जुदा जुदा 
ये बाँकपन की चाल ये नाज़-ओ-अदा की है 

~ बेख़ुद देहलवी

 

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Urdu Poetry: सदा एक ही रुख़ नहीं नाव चलती

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