अमर उजाला
Thu, 23 October 2025
ख़र्च चलेगा अब मिरा किस के हिसाब में भला
सब के लिए बहुत हूँ मैं अपने लिए ज़रा नहीं
ये काफ़ी है कि हम दुश्मन नहीं हैं
वफ़ा-दारी का दावा क्यूँ करें हम
हम जो अब आदमी हैं पहले कभी
जाम होंगे छलक गए होंगे
तिरी क़ीमत घटाई जा रही है
मुझे फ़ुर्क़त सिखाई जा रही है
Urdu Poetry: ख़्वाब होते हैं देखने के लिए, उन में जा कर मगर रहा न करो