महामूर्ख मेला: यहां लोग गधों की तरह करते हैं आवाज, मर्द बनते हैं दुल्हन

अमर उजाला

Fri, 31 March 2023

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धर्म और संस्कृति के अलावा वाराणसी अपनी मस्ती व फक्कड़पन के लिए जाना जाता है, इस परंपरा को गंगा के तट पर पिछले 55 सालों से महामूर्ख मेला के रूप में जीवंत रखा है।

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मूर्ख बनने के लिए बनारसी पिछले 55 सालों से काशी के घोड़ा घाट पर इस परंपरा के साक्षी बन रहे हैं।

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जी हां! घोड़ा घाट जिसका नाम शायद अब लोग बिसरा चुके हैं, लेकिन घोड़ा घाट अब डॉ. राजेन्द्र प्रसाद घाट के नाम से जाना जाता है।

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न कोई प्रचार न ही कोई बैनर, हर काशीवासी को एक अप्रैल की शाम का इंतजार रहता है, लाखों लोग खुद-बखुद मूर्ख बनने के लिए घाट की सीढ़ियों पर आकर बैठ जाते हैं।
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महामूर्ख मेला के संयोजक सुदामा तिवारी सांड़ बनारसी बताते हैं कि 55 साल पहले महामूर्ख मेले की शुरुआत डेढ़सी पुल से हुई थी। 

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महामूर्ख मेला में अब तक न जाने कितने ही विशिष्ट जन बेमेल विवाह के बंधन में बंध चुके हैं, इसमें पुरुष दुल्हन और महिला दूल्हा बनती है।

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कार्यक्रम की शुरुआत गर्दभ (गधा) ध्वनि से होता है, चीपो-चीपो की आवाज से जब घाट गूंजने लगता है तो पूरा माहौल ठहाकों से गूंज उठता है।

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