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Botswana: बोत्सवाना के राष्ट्रपति ने मुर्मू से की मुलाकात, भारतीय सुप्रीम कोर्ट और शिक्षकों की सराहना की
वर्ल्ड डेस्क, अमर उजाला, गबोरोन।
Published by: निर्मल कांत
Updated Wed, 12 Nov 2025 08:18 PM IST
सार
Botswana: बोत्सवाना के राष्ट्रपति डुमा बोको ने भारत के सुप्रीम कोर्ट, शिक्षकों और रवींद्रनाथ टैगोर की जमकर तारीफ की। उन्होंने सुप्रीम कोर्ट के फैसलों और 1985 के अहम निर्णय का हवाला देते हुए कहा कि भारतीय न्यायशास्त्र बोत्सवाना के लिए मार्गदर्शक है। राष्ट्रपति मुर्मू के साथ बैठक में दोनों नेताओं ने आठ चीते भारत में स्थानांतरित करने और स्वास्थ्य सहयोग समेत कई द्विपक्षीय पहलों की घोषणा की।
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द्रौपदी मुर्मू, डुमा बोको
- फोटो : पीटीआई
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विस्तार
बोत्सवाना के राष्ट्रपति डुमा बोको ने बुधवार को भारत के सुप्रीम कोर्ट की सराहना की, जिससे उनके देश के न्यायशास्त्र को प्रेरणा मिली। राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू के अफ्रीकी देश के राजकीय दौरे का स्वागत करते हुए डुमा ने गणित और विज्ञान में भारतीय शिक्षकों के योगदान को स्वीकार किया और नोबेल पुरस्कार विजेता रवींद्रनाथ टैगोर की साहित्यिक प्रतिभा की प्रशंसा की।
वकील रहे बोको ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति का पद संभाला। उन्होंने मुर्मू के साथ उच्च स्तरीय बैठक की। जिसके बाद अपने संबोधन और संयुक्त प्रेस वार्ता में उन्होंने भारत के शीर्ष कोर्ट की सराहना की। दोनों नेताओं ने भारत में आठ चीते स्थानांतरित करने के लिए एक सहयोगी परियोजना और कई अन्य द्विपक्षीय सहयोग पहलों की घोषणा की।
ये भी पढ़ें: रूस ने दक्षिणी यूक्रेन में अग्रिम मौर्चे पर तेज किए हमले, तीन बस्तियों पर कर लिया कब्जा
राष्ट्रपति बोको ने कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों बोत्सवाना के न्यायशास्त्र को 'प्रेरित' किया है। उन्होंने पेटेंट और बौद्धिक संपदा कानूनों पर दिए गए फैसलों और 'एवरग्रीनिंग' की प्रचलित प्रथा का जिक्र किया। उन्होंने कहा, भारतीय अदालतों ने कहा है कि यदि निर्माता बिना प्रभाव बढ़ाए केवल उत्पाद की पैकेजिंग बदलते हैं, तो ऐसा उत्पाद पेटेंट योग्य नहीं हो सकता।
भारतीय न्यायशास्त्र हमारे लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शक: : डुमा बोको
उन्होंने 1985 में पांच जजों की बेंच द्वारा दिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला भी याद किया, जिसका नेतृत्व तब के चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड ने किया था, जिसने भारतीय संविधान के तहत जीवन के अधिकार के दायरे को जीवन यापन के अधिकार तक बढ़ाया। बोको ने कहा, भारतीय न्यायशास्त्र हमारे लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शक है। यह फैसला (समानता के अधिकार पर) दूर-दूर तक पहुंचा। यह हमारे न्यायालयों तक भी पहुंचा। मैंने व्यक्तिगत रूप से इसका सहारा लिया है। यह बहुत गहरा निर्णय और अवलोकन था। हमने इस फैसले से प्रेरणा ली है।
'रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज'
बोको ने कहा कि उनका देश साहित्य में भी टैगोर के कार्यों से प्रेरित है, जिन्हें उन्होंने 'साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज और प्रमुख हस्ती' बताया। उन्होंने कहा कि बोत्सवाना भारत के प्रति 'ऋणी' है, जो टैगोर के कार्यों के माध्यम से पोषण प्राप्त करता रहा है। बोको ने कहा कि उनका देश साहित्य में भी टैगोर के कार्यों से प्रेरित है, जिन्हें उन्होंने 'साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज और प्रमुख हस्ती' बताया। उन्होंने कहा कि बोत्सवाना भारत के प्रति 'ऋणी' है, जो टैगोर के कार्यों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता रहा है।
ये भी पढ़ें: विदेश मंत्री जयशंकर ने नियाग्रा में जी-7 से इतर कनाडाई समकक्ष से की मुलाकात, 'नए रोडमैप' पर की चर्चा
राष्ट्रपति बोको ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की सराहना की
राष्ट्रपति ने भारतीय शिक्षकों, विशेषकर गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षकों की भूमिका की भी सराहना की, जिन्होंने बोत्सवाना की शिक्षा प्रणाली को आकार देने में 'प्रेरणा' दी। उन्होंने याद किया कि उनके एक भारतीय सहपाठी, जो अब भारत में एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं, ने एक बार किताबें साझा की थीं, जिससे उनकी समझ बढ़ी। बोको ने कहा कि भारत में अच्छी शिक्षा और प्रशिक्षण पर जोर इसके नागरिकों के वैश्विक तकनीकी कंपनियों में उच्च पदों पर पहुंचने में दिखाई देता है। उन्होंने कहा, यह कोई आश्चर्य नहीं कि अधिकांश तकनीकी कंपनियां भारतीय विशेषज्ञता ढूंढती हैं। हम चाहते हैं कि यह कौशल यहां भी साझा किया जाए।
स्वास्थ्य सहयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर
राष्ट्रपति मुर्मू और उनके समकक्ष बोको ने स्वास्थ्य सहयोग को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। राष्ट्रपति मुर्मू बोत्सवाना की तीन दिवसीय राज्य यात्रा पर हैं, जो इस दक्षिण अफ्रीकी देश में किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली यात्रा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में क्या कहा?
राष्ट्रपति मुर्मू ने गबोरोन में बोत्सवाना की नेशनल असेंबली (संसद) को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने कहा, भारत और बोत्सवाना मिलकर एक अधिक न्यायपूर्ण और टिकाऊ विश्व व्यवस्था में सार्थक योगदान दे सकते हैं। ऐसी व्यवस्था जो केवल समर्थन ही नहीं करती बल्कि वैश्विक दक्षिण देशों के बीच सार्थक सहयोग और बहुपक्षीय व्यवस्था को भी मजबूत करती है।
राष्ट्रपति ने आगे कहा, आज मुझे इस प्रतिष्ठित सदन को संबोधित करने का बहुत सुखद अनुभव हो रहा है। यह आपके गौरवशाली राष्ट्र का लोकतंत्र का मंदिर है। बोत्सवाना लोकतंत्र, सुशासन और प्रभावी नेतृत्व का एक चमकता उदाहरण है। यह दिखाता है कि जब लोकतंत्र को आम लोगों के कल्याण के लिए सही तरीके से काम करने दिया जाए, जब राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग देश के समग्र विकास और कमजोर तथा पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए किया जाए, तो क्या-क्या संभव है। उन्होंने यह भी कहा, भारत अपनी क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में चल रहे साझेदारी पर बहुत गर्व करता है। पिछले दशक में ही बोत्सवाना के एक हजार से अधिक युवा भारत में अध्ययन और प्रशिक्षण प्राप्त कर घर लौटे।
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वकील रहे बोको ने पिछले साल नवंबर में राष्ट्रपति का पद संभाला। उन्होंने मुर्मू के साथ उच्च स्तरीय बैठक की। जिसके बाद अपने संबोधन और संयुक्त प्रेस वार्ता में उन्होंने भारत के शीर्ष कोर्ट की सराहना की। दोनों नेताओं ने भारत में आठ चीते स्थानांतरित करने के लिए एक सहयोगी परियोजना और कई अन्य द्विपक्षीय सहयोग पहलों की घोषणा की।
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राष्ट्रपति बोको ने कहा कि भारतीय सुप्रीम कोर्ट के फैसलों बोत्सवाना के न्यायशास्त्र को 'प्रेरित' किया है। उन्होंने पेटेंट और बौद्धिक संपदा कानूनों पर दिए गए फैसलों और 'एवरग्रीनिंग' की प्रचलित प्रथा का जिक्र किया। उन्होंने कहा, भारतीय अदालतों ने कहा है कि यदि निर्माता बिना प्रभाव बढ़ाए केवल उत्पाद की पैकेजिंग बदलते हैं, तो ऐसा उत्पाद पेटेंट योग्य नहीं हो सकता।
भारतीय न्यायशास्त्र हमारे लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शक: : डुमा बोको
उन्होंने 1985 में पांच जजों की बेंच द्वारा दिया गया एक महत्वपूर्ण फैसला भी याद किया, जिसका नेतृत्व तब के चीफ जस्टिस वाईवी चंद्रचूड ने किया था, जिसने भारतीय संविधान के तहत जीवन के अधिकार के दायरे को जीवन यापन के अधिकार तक बढ़ाया। बोको ने कहा, भारतीय न्यायशास्त्र हमारे लिए उत्कृष्ट मार्गदर्शक है। यह फैसला (समानता के अधिकार पर) दूर-दूर तक पहुंचा। यह हमारे न्यायालयों तक भी पहुंचा। मैंने व्यक्तिगत रूप से इसका सहारा लिया है। यह बहुत गहरा निर्णय और अवलोकन था। हमने इस फैसले से प्रेरणा ली है।
'रवींद्रनाथ टैगोर साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज'
बोको ने कहा कि उनका देश साहित्य में भी टैगोर के कार्यों से प्रेरित है, जिन्हें उन्होंने 'साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज और प्रमुख हस्ती' बताया। उन्होंने कहा कि बोत्सवाना भारत के प्रति 'ऋणी' है, जो टैगोर के कार्यों के माध्यम से पोषण प्राप्त करता रहा है। बोको ने कहा कि उनका देश साहित्य में भी टैगोर के कार्यों से प्रेरित है, जिन्हें उन्होंने 'साहित्य की बहुत ही शक्तिशाली आवाज और प्रमुख हस्ती' बताया। उन्होंने कहा कि बोत्सवाना भारत के प्रति 'ऋणी' है, जो टैगोर के कार्यों के माध्यम से ज्ञान प्राप्त करता रहा है।
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राष्ट्रपति बोको ने भारतीय शिक्षा प्रणाली की सराहना की
राष्ट्रपति ने भारतीय शिक्षकों, विशेषकर गणित और विज्ञान पढ़ाने वाले शिक्षकों की भूमिका की भी सराहना की, जिन्होंने बोत्सवाना की शिक्षा प्रणाली को आकार देने में 'प्रेरणा' दी। उन्होंने याद किया कि उनके एक भारतीय सहपाठी, जो अब भारत में एक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर हैं, ने एक बार किताबें साझा की थीं, जिससे उनकी समझ बढ़ी। बोको ने कहा कि भारत में अच्छी शिक्षा और प्रशिक्षण पर जोर इसके नागरिकों के वैश्विक तकनीकी कंपनियों में उच्च पदों पर पहुंचने में दिखाई देता है। उन्होंने कहा, यह कोई आश्चर्य नहीं कि अधिकांश तकनीकी कंपनियां भारतीय विशेषज्ञता ढूंढती हैं। हम चाहते हैं कि यह कौशल यहां भी साझा किया जाए।
स्वास्थ्य सहयोग के लिए समझौते पर हस्ताक्षर
राष्ट्रपति मुर्मू और उनके समकक्ष बोको ने स्वास्थ्य सहयोग को लेकर एक समझौते पर हस्ताक्षर किए। राष्ट्रपति मुर्मू बोत्सवाना की तीन दिवसीय राज्य यात्रा पर हैं, जो इस दक्षिण अफ्रीकी देश में किसी भारतीय राष्ट्रपति की पहली यात्रा है।
राष्ट्रपति द्रौपदी मुर्मू ने अपने संबोधन में क्या कहा?
राष्ट्रपति मुर्मू ने गबोरोन में बोत्सवाना की नेशनल असेंबली (संसद) को संबोधित किया। राष्ट्रपति ने कहा, भारत और बोत्सवाना मिलकर एक अधिक न्यायपूर्ण और टिकाऊ विश्व व्यवस्था में सार्थक योगदान दे सकते हैं। ऐसी व्यवस्था जो केवल समर्थन ही नहीं करती बल्कि वैश्विक दक्षिण देशों के बीच सार्थक सहयोग और बहुपक्षीय व्यवस्था को भी मजबूत करती है।
राष्ट्रपति ने आगे कहा, आज मुझे इस प्रतिष्ठित सदन को संबोधित करने का बहुत सुखद अनुभव हो रहा है। यह आपके गौरवशाली राष्ट्र का लोकतंत्र का मंदिर है। बोत्सवाना लोकतंत्र, सुशासन और प्रभावी नेतृत्व का एक चमकता उदाहरण है। यह दिखाता है कि जब लोकतंत्र को आम लोगों के कल्याण के लिए सही तरीके से काम करने दिया जाए, जब राष्ट्रीय संसाधनों का उपयोग देश के समग्र विकास और कमजोर तथा पिछड़े वर्ग के उत्थान के लिए किया जाए, तो क्या-क्या संभव है। उन्होंने यह भी कहा, भारत अपनी क्षमता निर्माण और मानव संसाधन विकास के क्षेत्र में चल रहे साझेदारी पर बहुत गर्व करता है। पिछले दशक में ही बोत्सवाना के एक हजार से अधिक युवा भारत में अध्ययन और प्रशिक्षण प्राप्त कर घर लौटे।
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