न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप देशों की सदस्यता को लेकर जीतोड़ मेहनत कर रहे भारत का रास्ता एक बार फिर से चीन ने रोक दिया है। चीन के राजनायिक वांग क्यून ने कहा कि चीन, पाकिस्तान और भारत दोनों का तब तक समर्थन नहीं कर सकता है। जब तक वो दोनों ही एनएसजी सदस्यता के लिए जरूरी शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। चीन ने कहा कि जब तक भारत एनपीटी में शामिल नहीं होता है, तब तक भारत को एनएसजी देशों की सूची में शामिल करने का मुद्दा सामने नहीं आ सकता है।
चीन के राजनायिक ने कहा कि एनपीटी पर हस्ताक्षर एनएसजी देशों में शामिल होने के लिए पांच जरूरी शर्तों में से एक है। भारत को एनएसजी में शामिल होने के लिए पहले एनपीटी पर हस्ताक्षर करने होंगे। राजनायिक ने कहा कि एनएसजी के लिए नियम चीन ने नहीं बल्कि पूरे समूह ने मिलकर बनाएं हैं। भारत को इसको मानना होगा।
स्विटजरलैंड ने भी भारत के एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बिना एनएसजी में शामिल होने का विरोध किया है। आपको बताते चले कि इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान स्विटजरलैंड ने भारत को एनएसजी देशों की सदस्यता के लिए समर्थन देने की बात कही थी।
वहीं अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत के न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के आवेदन पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत-चीन में भले ही मनमुटाव हों पर अमेरिका चाहता है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते अच्छे हों।
आपको बताते चलें कि प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की बृहस्पतिवार को चीन से समर्थन की अपील के बावजूद परमाणु आपूर्तिकर्ता समूह (एनएसजी) में भारत की सदस्यता पर बना गतिरोध नहीं टूटा था। ताशकंद में मोदी और चीन के राष्ट्रपति शी जिनपिंग की बृहस्पतिवार को 50 मिनट की एक अहम मुलाकात के दौरान इस मसले पर बातचीत हुई। प्रधानमंत्री ने जिनपिंग से कहा कि वह एनएसजी में भारत की सदस्यता के आवेदन का निष्पक्ष आकलन करें। लेकिन सियोल में चल रही एनएसजी की समग्र बैठक में चीन की अगुवाई में कुछ देशों की ओर से भारत की सदस्यता का कड़ा विरोध किया गया।
48 सदस्य देशों वाले एनएसजी की बैठक के एजेंडे में भारत की सदस्यता पर चर्चा करना शामिल नहीं था। लेकिन बृहस्पतिवार को शुरुआती सत्र में ही जापान और कुछ अन्य देशों ने यह मुद्दा उठाया। इसके बाद रात के भोजन के बाद भारत के आवेदन पर चर्चा की गई। लेकिन समूह में भारत को शामिल करने पर सदस्य देशों की राय बंटी रही। समझा जाता है कि बैठक में चीन के अलावा तुर्की, ऑस्ट्रिया, ब्राजील, न्यूजीलैंड और आयरलैंड जैसे कुछ देशों ने भारत की सदस्यता का विरोध करते हुए कहा कि भारत ने परमाणु अप्रसार संधि (एनपीटी) पर हस्ताक्षर नहीं किए हैं और ऐसे में उसे इस समूह में शामिल नहीं किया जा सकता है।
एनएसजी की समग्र बैठक से पहले अमेरिका और फ्रांस ने बाकायदा बयान जारी कर सदस्य देशों से भारत की सदस्यता का समर्थन करने की अपील की। विदेश सचिव एस जयशंकर की अगुवाई में भारतीय राजनयिक लॉबिंग के लिए सियोल में हैं।
भारत का मानना है कि उसकी एनएसजी सदस्यता के लिए चीन का रुख बेहद महत्वपूर्ण है। यदि चीन का रुख बदलता है तो विरोध कर रहे अन्य देशों का रुख भी सकारात्मक हो जाएगा। 48 सदस्य देशों के 300 प्रतिनिधि सियोल में चल रही एनएसजी की बैठक में हिस्सा ले रहे हैं।
भारत के पूर्ण समर्थन में हैं 20 देश
लगभग 20 देश भारत की एनएसजी सदस्यता की दावेदारी का पूरी तरह समर्थन कर रहे हैं। लेकिन 48 देशों के समूह एनएसजी में सर्वसम्मति से निर्णय लिया जाता है।
न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप देशों की सदस्यता को लेकर जीतोड़ मेहनत कर रहे भारत का रास्ता एक बार फिर से चीन ने रोक दिया है। चीन के राजनायिक वांग क्यून ने कहा कि चीन, पाकिस्तान और भारत दोनों का तब तक समर्थन नहीं कर सकता है। जब तक वो दोनों ही एनएसजी सदस्यता के लिए जरूरी शर्तों को पूरा नहीं करते हैं। चीन ने कहा कि जब तक भारत एनपीटी में शामिल नहीं होता है, तब तक भारत को एनएसजी देशों की सूची में शामिल करने का मुद्दा सामने नहीं आ सकता है।
चीन के राजनायिक ने कहा कि एनपीटी पर हस्ताक्षर एनएसजी देशों में शामिल होने के लिए पांच जरूरी शर्तों में से एक है। भारत को एनएसजी में शामिल होने के लिए पहले एनपीटी पर हस्ताक्षर करने होंगे। राजनायिक ने कहा कि एनएसजी के लिए नियम चीन ने नहीं बल्कि पूरे समूह ने मिलकर बनाएं हैं। भारत को इसको मानना होगा।
स्विटजरलैंड ने भी भारत के एनपीटी पर हस्ताक्षर किए बिना एनएसजी में शामिल होने का विरोध किया है। आपको बताते चले कि इससे पहले भारत के प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी की यात्रा के दौरान स्विटजरलैंड ने भारत को एनएसजी देशों की सदस्यता के लिए समर्थन देने की बात कही थी।
वहीं अमेरिका के विदेश मंत्रालय ने कहा कि हम चाहते हैं कि भारत के न्यूक्लियर सप्लायर्स ग्रुप के आवेदन पर गंभीरतापूर्वक विचार होना चाहिए। अमेरिकी विदेश मंत्रालय ने कहा कि भारत-चीन में भले ही मनमुटाव हों पर अमेरिका चाहता है कि दोनों देशों के बीच द्विपक्षीय रिश्ते अच्छे हों।