अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने दो ट्रिलियन डॉलर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज (जिसे औपचारिक रूप से उन्होंने अमेरिकन जॉब्स प्लान नाम दिया है) में चीन का जो एंगल जोड़ा, उस पर यहां कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। गौरतलब है कि इस तरफ ध्यान अमेरिकी मीडिया ने भी खींचा है कि अपने पैकेज का एलान करते वक्त बाइडन ने जहां ‘रोड’ (सड़क) शब्द दो बार कहा, वहीं उन्होंने छह बार चीन का नाम लिया।
इस पर लिखे एक संपादकीय में चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा है- ‘अब अपनी घरेलू नीति के मामले में भी अमेरिका के दिमाग में हर जगह चीन मौजूद है। वह इसे जब तब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जोड़ता है, और अमेरिका में पैदा हुए किसी औद्योगिक असंतुलन के लिए वह चीन को दोषी ठहराता है। लेकिन इससे राष्ट्रवाद की भावना भड़कने के अलावा ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे अमेरिका की समस्या हल हो।’
इस बात का जिक्र अमेरिकी मीडिया में भी हुआ है। वहां छपी टिप्पणियों में कहा गया है कि अब अमेरिका ऐसे युग में प्रवेश कर गया है जब वह अपनी घरेलू पहल को भी चीन से प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में देखता है। गौरतलब है कि पेनसिल्वेनिया राज्य के पिट्ट्सबर्ग शहर में इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज का एलान करते हुए बाइडन ने कहा था- ‘इस योजना से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी, इससे दुनिया में हमारी प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ेगी, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित आगे बढ़ेंगे, और यह हमें उस स्थिति में ले आएगी जिससे हम आने वाले वर्षों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में चीन का मुकाबला कर पाएं।’ इस भाषण में आगे उन्होंने कहा- ‘अमेरिका और चीन और बाकी दुनिया के लिए प्रतिस्पर्धा का यही अर्थ है। बुनियादी सवाल है कि क्या लोकतांत्रिक देश अपनी जनता की उम्मीदों को पूरा कर पाएंगे।’
कुछ अमेरिकी टीकाकारों ने कहा है कि बाइडन ने चीन का जिक्र घरेलू राजनीति की जरूरतों के दबाव में किया। इसके जरिए उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की, ताकि इस पैकेज को सीनेट से पारित कराने में उसका सहयोग हासिल हो सके। लेकिन पैकेज में जो बातें शामिल हैं, उनके विश्लेषण से जाहिर हुआ है कि इसे तैयार करते वक्त सचमुच बाइडन प्रशासन के दिमाग पर चीन मंडरा रहा था। इस पैकेज में सेमीकंडक्टर्स के उत्पादन पर 50 अरब डॉलर और महत्वपूर्ण तकनीक और स्वस्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर 180 डॉलर खर्च करने का प्रावधान है।
गौरतलब है कि व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान 2019 से यह कहते रहे हैं कि चीन एक ऐसा पहलू है, जिसको लेकर अमेरिका में राष्ट्रीय एकजुटता पैदा हो सकती है। तब उन्होंने एक लेख में कहा था कि चीन से आ रही प्रतिस्पर्धा की चुनौती ऐसी है कि अमेरिका में आविष्कार और सुधार के लिए आम राय बन सकती है।
चीन में हुई प्रतिक्रिया की वजह यही पृष्ठभूमि है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि अमेरिका की समस्याएं अपनी हैं, इसलिए उसे चीन को भूलने की आदत डालनी चाहिए। टाइम्स के संपादकीय में उल्लेख है कि अमेरिका ने एक दशक पहले हाई स्पीड रेलवे बनाने का इरादा जताया था। टाइम्स ने पूछा है कि आखिर उसमें अब तक एक किलोमीटर का निर्माण भी क्यों नहीं हुआ? संपादकीय में कहा गया है कि जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की कई नीतियां बदल दीं। अब जो बाइडन ट्रंप की कई नीतियां बदल रहे हैं। फिर सवाल उठाया गया है कि क्या अमेरिका को ऐसा करने के लिए चीन ने कहा है?
ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि बाइडन का पैकेज अल्पकालिक कारगर दवा है। लेकिन अभी अमेरिका में जैसा राजनीतिक बंटवारा है, उसके बीच इसका पास होना मुश्किल दिखता है।
विस्तार
अमेरिकी राष्ट्रपति जो बाइडन ने अपने दो ट्रिलियन डॉलर के इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज (जिसे औपचारिक रूप से उन्होंने अमेरिकन जॉब्स प्लान नाम दिया है) में चीन का जो एंगल जोड़ा, उस पर यहां कड़ी प्रतिक्रिया हुई है। गौरतलब है कि इस तरफ ध्यान अमेरिकी मीडिया ने भी खींचा है कि अपने पैकेज का एलान करते वक्त बाइडन ने जहां ‘रोड’ (सड़क) शब्द दो बार कहा, वहीं उन्होंने छह बार चीन का नाम लिया।
इस पर लिखे एक संपादकीय में चीन के सरकार समर्थक अखबार ग्लोबल टाइम्स ने कहा है- ‘अब अपनी घरेलू नीति के मामले में भी अमेरिका के दिमाग में हर जगह चीन मौजूद है। वह इसे जब तब अपनी राष्ट्रीय सुरक्षा नीति से जोड़ता है, और अमेरिका में पैदा हुए किसी औद्योगिक असंतुलन के लिए वह चीन को दोषी ठहराता है। लेकिन इससे राष्ट्रवाद की भावना भड़कने के अलावा ऐसा कुछ नहीं होगा, जिससे अमेरिका की समस्या हल हो।’
इस बात का जिक्र अमेरिकी मीडिया में भी हुआ है। वहां छपी टिप्पणियों में कहा गया है कि अब अमेरिका ऐसे युग में प्रवेश कर गया है जब वह अपनी घरेलू पहल को भी चीन से प्रतिस्पर्धा के संदर्भ में देखता है। गौरतलब है कि पेनसिल्वेनिया राज्य के पिट्ट्सबर्ग शहर में इन्फ्रास्ट्रक्चर पैकेज का एलान करते हुए बाइडन ने कहा था- ‘इस योजना से अर्थव्यवस्था में वृद्धि होगी, इससे दुनिया में हमारी प्रतिस्पर्धा की क्षमता बढ़ेगी, राष्ट्रीय सुरक्षा के हित आगे बढ़ेंगे, और यह हमें उस स्थिति में ले आएगी जिससे हम आने वाले वर्षों में वैश्विक प्रतिस्पर्धा में चीन का मुकाबला कर पाएं।’ इस भाषण में आगे उन्होंने कहा- ‘अमेरिका और चीन और बाकी दुनिया के लिए प्रतिस्पर्धा का यही अर्थ है। बुनियादी सवाल है कि क्या लोकतांत्रिक देश अपनी जनता की उम्मीदों को पूरा कर पाएंगे।’
कुछ अमेरिकी टीकाकारों ने कहा है कि बाइडन ने चीन का जिक्र घरेलू राजनीति की जरूरतों के दबाव में किया। इसके जरिए उन्होंने रिपब्लिकन पार्टी पर दबाव बढ़ाने की कोशिश की, ताकि इस पैकेज को सीनेट से पारित कराने में उसका सहयोग हासिल हो सके। लेकिन पैकेज में जो बातें शामिल हैं, उनके विश्लेषण से जाहिर हुआ है कि इसे तैयार करते वक्त सचमुच बाइडन प्रशासन के दिमाग पर चीन मंडरा रहा था। इस पैकेज में सेमीकंडक्टर्स के उत्पादन पर 50 अरब डॉलर और महत्वपूर्ण तकनीक और स्वस्छ ऊर्जा के क्षेत्र में अनुसंधान और विकास पर 180 डॉलर खर्च करने का प्रावधान है।
गौरतलब है कि व्हाइट हाउस के राष्ट्रीय सुरक्षा सलाहकार जेक सुलिवान 2019 से यह कहते रहे हैं कि चीन एक ऐसा पहलू है, जिसको लेकर अमेरिका में राष्ट्रीय एकजुटता पैदा हो सकती है। तब उन्होंने एक लेख में कहा था कि चीन से आ रही प्रतिस्पर्धा की चुनौती ऐसी है कि अमेरिका में आविष्कार और सुधार के लिए आम राय बन सकती है।
चीन में हुई प्रतिक्रिया की वजह यही पृष्ठभूमि है। ग्लोबल टाइम्स ने कहा है कि अमेरिका की समस्याएं अपनी हैं, इसलिए उसे चीन को भूलने की आदत डालनी चाहिए। टाइम्स के संपादकीय में उल्लेख है कि अमेरिका ने एक दशक पहले हाई स्पीड रेलवे बनाने का इरादा जताया था। टाइम्स ने पूछा है कि आखिर उसमें अब तक एक किलोमीटर का निर्माण भी क्यों नहीं हुआ? संपादकीय में कहा गया है कि जब डोनाल्ड ट्रंप राष्ट्रपति बने तो उन्होंने अपने पूर्ववर्ती बराक ओबामा की कई नीतियां बदल दीं। अब जो बाइडन ट्रंप की कई नीतियां बदल रहे हैं। फिर सवाल उठाया गया है कि क्या अमेरिका को ऐसा करने के लिए चीन ने कहा है?
ग्लोबल टाइम्स में छपी एक रिपोर्ट में विश्लेषकों के हवाले से कहा गया है कि बाइडन का पैकेज अल्पकालिक कारगर दवा है। लेकिन अभी अमेरिका में जैसा राजनीतिक बंटवारा है, उसके बीच इसका पास होना मुश्किल दिखता है।