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Social Media Poetry: आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था हमारे दरमियां क्या था?

वायरल काव्य
                
                                                         
                            हमारे दरमियां क्या था?-
                                                                 
                            

आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था
हमारे दरमियां क्या था?

तुम्हारे होंठ हिलते थे
तितलियां हर सूं उड़ती थीं
हमारी उंगलियां जब भी
कभी आपस में मिलती थीं 

ओस थी, पानी था, आंसू थे, पसीना था
हमारे दरमियां क्या था?

आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था
हमारे दरमियां क्या था?

बदन में लहरें उठती थीं
नसों के तार हिलते थे
तुम्हारी इक छुअन से ही
हमारे ख़्वाब खुलते थे

दिन थे, महीने थे, सदियां थीं, जमाना था
हमारे दरमियां क्या था?

आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था
हमारे दरमियां क्या था?

छतों पर ज़्यादा रहते थे
गली में ही भटकते थे
किताबें बात करतीं थीं
गुलाबों को सिरजते थे

खुशबुएं थीं, यादें थीं, रातें थीं, रोना था
हमारे दरमियां क्या था?
 

आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था
हमारे दरमियां क्या था?

एक डोली उठी थी जब
गला रूंधे खड़े थे तब
तुम्हारी रुखसती थी या
रुखसत हो रहे थे सब

कहना था, सुनाना था, बताना था, जताना था
हमारे दरमियां क्या था?

आग थी, बिजली थी, बारिश थी, तूफां था
हमारे दरमियां क्या था?

साभार: आलोक कुमार मिश्रा की फेसबुक वाल से 

22 घंटे पहले

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