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                                                                           एक मित्र मिले, बोले, "लाला, तुम किस चक्की का खाते हो?
इस डेढ़ छटांक के राशन में भी तोंद बढ़ाए जाते हो
क्या रक्खा माँस बढ़ाने में, मनहूस, अक्ल से काम करो
संक्रान्ति-काल की बेला है, मर मिटो, जगत में नाम करो"
हम बोले, "रहने द...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           चलो दिलदार चलो 
चांद के पार चलो
हम हैं तैयार चलो...'

पाकीज़ा फ़िल्म के इस मशहूर गीत को क़लमबंद करने वाले शायर और गीतकार कैफ़ भोपाली को मुशायरों की रौनक़ कहा जाता था, वह आम चलन से हटकर शेर कहते थे। जिस मुशायरे में कैफ़और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           'हिंदी हैं हम' शब्द शृंखला में आज का शब्द है- दुर्धर्ष, जिसका अर्थ है- जिसे वश में करना कठिन हो, प्रबल। प्रस्तुत है रामधारी सिंह "दिनकर" की कविता- विजयी के सदृश जियो रे

वैराग्य छोड़ बाँहों की विभा संभालो
चट्टानों की छाती...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           
युद्ध नहीं जिनके जीवन में
वे भी बहुत अभागे होंगे
या तो प्रण को तोड़ा होगा
या फिर रण से भागे होंगे
दीपक का कुछ अर्थ नहीं है
जब तक तम से नहीं लड़ेगा
दिनकर नहीं प्रभा बाँटेगा
जब तक स्वयं नहीं धधकेगा...और पढ़ें
19 hours ago
                                                                           
तुम पे क्या बीत गई कुछ तो बताओ यारो
मैं कोई ग़ैर नहीं हूँ कि छुपाओ यारो

इन अंधेरों से निकलने की कोई राह करो
ख़ून-ए-दिल से कोई मिशअल ही जलाओ यारो

एक भी ख़्वाब न हो जिन में वो आँखें क्या हैं
इक...और पढ़ें
21 hours ago
                                                                           और फिर कृष्ण ने अर्जुन से कहा - 
न कोई भाई, न बेटा, न भतीजा, न गुरु
एक ही शक्ल उभरती है हर आईने में
आत्मा मरती नहीं, जिस्म बदल लेती है
धड़कन इस सीने की जा छुपती है उस सीने में

जिस्म लेते हैं जनम, जिस्म फ़ना...और पढ़ें
21 hours ago
                                                                           मनुष्य वह फल है जिसमें उसका मैं एक कीड़े की तरह बैठा रहता है।
- निर्मल वर्मा   ...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           एक भी आँसू न कर बेकार
जाने कब समंदर माँगने आ जाए

पास प्यासे के कुँआ आता नहीं है
यह कहावत है अमरवाणी नहीं है
और जिसके पास देने को न कुछ भी
एक भी ऎसा यहाँ प्राणी नहीं है

कर स्वयं हर गीत का श्रंग...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा
चराग़ ले के मुझे आफ़्ताब देना पड़ा

हर एक हाथ में दो दो सिफ़ारशी ख़त थे
हर एक शख़्स को कोई ख़िताब देना पड़ा

तअ'ल्लुक़ात में कुछ तो दरार पड़नी थी
कई सवाल थे जिन...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           मंज़िलें लाख कठिन आएँ गुज़र जाऊँगा
हौसला हार के बैठूँगा तो मर जाऊँगा

चल रहे थे जो मेरे साथ कहाँ हैं वो लोग
जो ये कहते थे कि रस्ते में बिखर जाऊँगा

दर-ब-दर होने से पहले कभी सोचा भी न था
घर मुझे रास न आ...और पढ़ें
15 hours ago
                                                                           अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली ...और पढ़ें
                                                
21 hours ago
                                                                           अमर उजाला काव्य डेस्क, नई दिल्ली ...और पढ़ें
                                                
4 minutes ago
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