पराया कौन है और कौन अपना सब भुला देंगे
मता-ए-ज़िंदगानी एक दिन हम भी लुटा देंगे
तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे
जलाए हैं दिए तो फिर हवाओं पर नज़र रक्खो...और पढ़ें
बशीर रामपुरी हज़रत-ए-दाग़ देहलवी से मुलाक़ात के लिए पहुंचे तो वो अपने मातहत से गुफ़्तगू भी कर रहे थे और अपने एक शागिर्द को अपनी नई ग़ज़ल के अशआ’र भी लिखवा रहे थे। बशीर साहब ने सुख़न गोई के इस तरीक़े पर ताज्जुब का इज़हार किया तो दाग़ साहब ने पूछा, “ख़ां सा...और पढ़ें
हम को किस के ग़म ने मारा ये कहानी फिर सही
किस ने तोड़ा दिल हमारा ये कहानी फिर सही
दिल के लुटने का सबब पूछो न सब के सामने
नाम आएगा तुम्हारा ये कहानी फिर सही
नफ़रतों के तीर खा कर दोस्तों के शहर में
हम...और पढ़ें
आसमानों से ज़मीं की तरफ़ आते हुए हम
एक मजमे के लिए शेर सुनाते हुए हम
किस गुमाँ में हैं तिरे शहर के भटके हुए लोग
देखने वाले पलट कर नहीं जाते हुए हम
कैसी जन्नत के तलबगार हैं तू जानता है
तेरी लिक्ख...और पढ़ें
चुपके चुपके रात दिन आँसू बहाना याद है
हम को अब तक आशिक़ी का वो ज़माना याद है
बा-हज़ाराँ इज़्तिराब ओ सद-हज़ाराँ इश्तियाक़
तुझ से वो पहले-पहल दिल का लगाना याद है
बार बार उठना उसी जानिब निगाह-ए-शौक़ का
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तुम अपने सामने की भीड़ से हो कर गुज़र जाओ
कि आगे वाले तो हरगिज़ न तुम को रास्ता देंगे
कोई पूछेगा जिस दिन वाक़ई ये ज़िंदगी क्या है
ज़मीं से एक मुट्ठी ख़ाक ले कर हम उड़ा देंगे ...और पढ़ें
इतना बड़ा आकाश
मेरी झोली में आ जाए
मैंने बार-बार सोचा था
अब जब
आकाश मेरे पास आ रहा है
तो मेरी झोली
बहुत छोटी हो गई है ।
आकाश को समेटने की इच्छा
हर कोई करता है
किंतु झोली का आकार...और पढ़ें
सफ़ेद हड्डी पे नहीं, ठोस पत्थरों पर ढला हूं,
तू मुझे फक़त गोश्त का लोथड़ा न समझ।
मैं फौलाद हूं, टूटकर भी जुड़ता जाऊँगा,
मेरे दिल को, कांच का खिलौना न समझ।
मेरे भीतर बुलंद तज़ुर्बों का समंदर सोया है,
मुझे...और पढ़ें
आसमान की गहराइयों को उन्मुक्त नापते पक्षियों को देख और पेड़ों की शाखाओं पर बैठे उन्हें चहचहाते सुन किसका मन खुशी से नहीं खिल जाता? दुर्भाग्यवश, बहुत लोग चाव से उन्हें घर में पिंजरे में कैद कर पालते भी हैं। तोता-मैना जैसे पक्षियों से तो हम बड़े प्यार स...और पढ़ें
रौशनी से जब हम ठुकराए गये
साथ छोड़कर सब साये गये
मेरी ख़ूबियों का ग़ुरूर टूट गया
जब मेरे ऐब मुझको गिनाए गये
सब क़ुसूर आँखों का था मगर
सब इल्ज़ाम दिल पे लगाए गये
हक़ीक़त में वो फ़क़त सह...और पढ़ें
'हिंदी हैं हम' शब्द श्रृंखला में आज का शब्द है- धधकना, जिसका अर्थ है- आग की लपट के साथ जलना, दहकना, भड़कना, उद्वेलित हो उठना। प्रस्तुत है सुरेश चंद्रा की कविता- जीवन, मरणोत्तर एक क्रियाशील शब्द है
केतकी!
कल फिर...और पढ़ें
कारवा टूट के रह गया,
समुंदर में किनारा ना मिला,
बे सहारों की इस दुनिया में,
कोई सहारा ना मिला।।
सीमा सूद...और पढ़ें
साथ किसी के रहना लेकिन
खुद को खुद से दूर न रखना।
रेगिस्तानों में उगते हैं
अनबोये काँटों के जंगल,
भीतर एक नदी होगी तो
कलकल कलकल होगी हलचल,
जो प्यासे सदियों से बंधक
अब उनको मजबूर न रखना।
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जिन्दगी गुजरती रही, अपना बनाना रह गया।
कोशिशें अब भी जारी, आना जाना रह गया।
जिस रास्ते हम चले, उसे ही सही मानते रहे।
लोग आते जाते रहे, बस साथ चलना रह गया।
जो लकड़ियाँ चुन के लाये, वह गीली निकली।
घर धुआँ से भर गया, बा...और पढ़ें
इंसानियत का एहसास भी
फिर शर्मिंदा होता होगा।
किसी का दर्द अगर तुम्हें
छूकर न गुज़रता होगा ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद...और पढ़ें
सफर हो रात में तो चाँद से आँखें मिला के चल,
सूरज की छाँव में आया तो फिर आँखें झुका के चल
सँभल के चलने वाले सब के सब तो लड़खड़ाये हैं,
सँभल के जो तुम्हे चलना है तो फिर लड़खड़ा के चल
यही चाहत मेरी ना हुस्न को...और पढ़ें
इस क़दर ना- उम्मीद अपनी हयात मत कर
इन हसरतों को दफ़्न करने की बात मत कर
जिंदगी आख़िर जिंदादिली का नाम है बशर
बेसबब मायूसियों में खराब दिनरात मत कर
#बशर...और पढ़ें
पलकों पे बिठाये जाने कितने हमने ख्बाब,
सच हो कल में सारे क्या न्यारे अपने रुबाब,
होंगें फिर उस वक्त के इकलौते हम ही नबाब,
सब आकर कहेंगे हमसे हां जी हां जी जनाब...और पढ़ें
सवाल खुद में फिर एक सवाल बन जाता ।
तेरे सवाल का अगर मैं जवाब बन जाता ।।
डाॅ फौज़िया नसीम शाद...और पढ़ें
धरती से उठ कर हम किधर को जाएंगे,
क्या हम भी कल को आसमां हो जाएंगे!
#बशर...और पढ़ें