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Urdu Poetry: तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा

उर्दू अदब
                
                                                         
                            तिरी मदद का यहाँ तक हिसाब देना पड़ा
                                                                 
                            
चराग़ ले के मुझे आफ़्ताब देना पड़ा

हर एक हाथ में दो दो सिफ़ारशी ख़त थे
हर एक शख़्स को कोई ख़िताब देना पड़ा

तअ'ल्लुक़ात में कुछ तो दरार पड़नी थी
कई सवाल थे जिन का जवाब देना पड़ा

अब इस सज़ा से बड़ी और क्या सज़ा होगी
नए सिरे से पुराना हिसाब देना पड़ा

इस इंतिज़ाम से क्या कोई मुतमइन होता
किसी का हिस्सा किसी को जनाब देना पड़ा

~ हसीब सोज़

22 घंटे पहले

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