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कैफ़ भोपाली कहां हैं? पता करने के लिए कमाल अमरोही ने रखा था एक आदमी

kamal amrohi deputed a person to look for kaif bhopali
                
                                                         
                            चलो दिलदार चलो 
                                                                 
                            
चांद के पार चलो
हम हैं तैयार चलो...'


पाकीज़ा फ़िल्म के इस मशहूर गीत को क़लमबंद करने वाले शायर और गीतकार कैफ़ भोपाली को मुशायरों की रौनक़ कहा जाता था, वह आम चलन से हटकर शेर कहते थे। जिस मुशायरे में कैफ़ पहुंचे मानो वह मुशायरा कामयाब हो गया। 1917 को मध्यप्रदेश के भोपाल में जन्मे कैफ़ भोपाली सादा दिल और अपनी शर्तों पर ज़िंदगी जीने वाले शायर थे।

वाणी प्रकाशन द्वारा प्रकाशित 'चेहरे' किताब में निदा फ़ाज़ली कैफ़ भोपाली के बारे में लिखते हैं, "मैं अमरावती के निकट बदनेरा स्टेशन पर मुंबई की गाड़ी की प्रतीक्षा कर रहा था। गाड़ी लेट थी। मैं समय गुज़ारने के लिए स्टेशन से बाहर आया। एक जानी-पहचानी मुतरन्निम आवाज़ ख़ामोशी में गूंज रही थी। यह आवाज़ मुझे कुलियों, फ़क़ीरों और तांगे वालों के उस जमघट की तरफ़ ले गयी जो सर्दी में एक अलाव जलाये बैठे थे और उनके बीच में 'कैफ़ भोपाली' झूम-झूम कर उन्हें ग़ज़लें सुना रहे थे और अपनी बोतल से उनकी आवभगत भी फरमा रहे थे। श्रोता हर शेर पर शोर मचा रहे थे। 

कैफ़ को दुनिया से बहुत ऐशो आराम की ख़्वाहिश नहीं थी, लेकिन शराब उनके शौक में पहले पायदान पर थी। निदा फ़ाज़ली लिखते हैं, 'प्रत्येक शहर के रास्ते मकान और छोटे-बड़े शहरी उन्हें अपनी बस्ती का समझते थे। वे मुशायरों के लोकप्रिय शायर थे। जहां जाते थे, पारिश्रमिक का अंतिम पैसा ख़र्च होने तक वे वहीं घूमते-फिरते दिखाई देते थे। एक मुशायरे से दूसरे मुशायरे के बीच का समय वे इसी तरह गुज़ारते थे। उनकी अपनी कमाई शराब एवं शहर के ज़रूरतमंदों के लिए होती थी। अन्य ख़र्चों की पूरी ज़िम्मेदारी उसी मेज़बान की होती थी, जो मुशायरे का संयोजक होने के साथ उनका प्रशंसक भी होता था। 

विशिष्ट तरन्नुम में शेर सुनाते थे। शेर सुनाते समय, आवाज़ के साथ पूरे जिस्म को प्रस्तुति में शामिल करते थे। जिस मुशायरे में आते थे, बार-बार सुने जाते थे। हर मुशायरे में उनकी पहचान खादी का वह सफेद कुर्ता-पायजामा होता था जो विशेष तौर से उसी मुशयारे के लिए किसी स्थानीय खादी भंडार से ख़रीदा जाता था।" आगे पढ़ें

कमाल अमरोही ने कैफ़ भोपाली को पहली बार मुशायरा में सुना था

21 घंटे पहले

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