शिव कुमार बटालवी के गीतों में ‘बिरह की पीड़ा’ इस कदर थी कि उस दौर की प्रसिद्ध कवयित्री अमृता प्रीतम ने उन्हें ‘बिरह का सुल्तान’ नाम दे दिया। शिव कुमार बटालवी यानी पंजाब का वह शायर जिसके गीत हिंदी में न आकर भी वह बहुत लोकप्रिय हो गया। उसने जो गीत अपनी गुम हुई महबूबा के लिए बतौर इश्तहार लिखा था वो जब फ़िल्मों तक पहुंचा तो मानो हर कोई उसकी महबूबा को ढूंढ़ते हुए गा रहा था
‘इक कुड़ी जिहदा नाम मोहब्बत गुम है’
शिव 23 जुलाई 1936 को पंजाब के सियालकोट में पैदा हुए थे जो अब पाकिस्तान में है। शिव के पिता एक तहसीलदार थे लेकिन शिव काहे को शायर हो गए ये बात उन्हें भी नहीं पता। देश बंटे तो शिव हिंदुस्तान आ गए, यहां आकर वह गुरदासपुर में बस गए। शिव की नियति में ही था कि वो एक कवि बनेंगे इसलिए बचपन से ही नदी, पेड़ और संगीत के सुकून में उन्हें अपना अंतस मिलता था। सियालकोट में पैदा हुए शिव गुरदासपुर, बटाला, कादियां, बैजनाथ होते हुए नाभा पहुंचे लेकिन उन्होेंने अपने नाम में बटालवी जोड़ते हुए बटाला को ताउम्र ख़ुद से जोड़ लिया।
गांव में पनपने वाली किसी सीधी-सादी कहानी की तरह शिव को भी मेले में एक लड़की से मुहब्बत हो गयी। जब वो लड़की नज़रों से ओझल हुई तो गीत बना
‘इक कुड़ी जिहदा नाम मुहब्बत ग़ुम है’
ओ साद मुरादी, सोहनी फब्बत
गुम है, गुम है, गुम है
ओ सूरत ओस दी, परियां वर्गी
सीरत दी ओ मरियम लगदी
हस्ती है तां फूल झडदे ने
तुरदी है तां ग़ज़ल है लगदी
लड़कपन का ये प्यार ख़त्म हो गया जब बीमारी में उस लड़की की मौत हो गयी। इसके बाद बड़े होते शिव के दिल में फिर एक लड़की ने जगह बनाई। हालांकि उस लड़की के बारे में कहा जाता है कि वह गुरबख़्श सिंह प्रीतलड़ी की तीन बेटियों में से एक थी। लेकिन वह लड़की कौन थी इसके बारे में आधिकारिक रुप से आज तक पता नहीं चला और ना वो ख़ुद ही कभी लोगों के सामने आयी।
आगे पढ़ें
कमेंट
कमेंट X