90 के दशक के बाद से बमुश्किल ही किसी फ़िल्मी संगीत और उसके बोलों से कोई गंभीर संबंध जुड़ पाया है। इस दौर में एक ऐसा गाना जिसमें शांत और श्रृंगार रस प्रचुर मात्रा में हो और जिसके बोल अलंकारित हों, वह कानों के लिए कुछ ऐसा दुर्लभ हो गया जैसे पिंजड़े में बंद पंक्षी के लिए आज़ादी।
इसी तरह रूह को उन्मुक्त करने के लिए कुछ ही गाने थे जो कर्णेन्द्रियों के आगे का सफ़र कर पाए। आज अगर काग़ज़ कलम लेकर कुछ चुनिंदा गानों के नाम लिखूंगी जो दिल को छू पाए तो उनमें से जिस गाने पर विशेष रूप से नज़र ठहर जाएगी वो है, सन् 2009 में आयी फ़िल्म ‘लव आजकल’ का ‘आज दिन चढे़या’। यह गाना अपने आप में उन सभी खूबियों को समेटे हुए है जो मन-सागर में उठने वाली सभी ज्वाराभाटाओं को मौन कर देता है और इसलिए यह मेरे अजीज़ नग़्मों में से एक है।
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आज दिन चढ़ेया, तेरे रंग वरगा...
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