यह किताब न तो शब्दों का उलझाव है और न ही भावनाओं की जटिल गुत्थी। यह निबंध संग्रह लेखिका के मन की एक उन्मुक्त अभिव्यक्ति है। पहले ही निबंध 'झुलफुलाह' को पढ़ कर उम्मीद जागी कि अंतिम जैसा कुछ नहीं 'छुपी हुई जगह' को पढ़कर यह जाना कि मनुष्य की दृढ़ इच्छाशक्ति उसे कुछ भी खोजने में सक्षम बना सकती है, चाहे वह नश्वर संसार में किसी भी दुर्लभ वस्तु की खोज हो या अपने घर में शांति का कोना ढूँढ़ना। 'नींद की नींद', हमें समझाती है कि जिम्मेदारियों से बचने का एक ही तरीका है कि उसे निभाया जाए। तभी सुख है - तभी तसल्ली भरी नींद भी है। 'मन अच्छा हो गया', निबंध पढ़ कर लेगा की आत्मीयता संबंधों को जोड़ती है और यह एक दूसरे की पूरक भी है। जब हम 'गोधूलि' और 'उदासी' को पढ़ते हैं तो जानते है कि मनुष्य की स्मृतियां और उन स्मृतियों में संबंधों का मिलना-बिछड़ना भी जीवन का एक अभिन्न ही अंग है। 'सावन-भादो', को लिखा पत्र पढ़कर पता चला कि जब दो अलग किस्म के लोग एक ही दुनिया को साझा करते हैं तो वह दुनिया कितनी खूबसूरत और मनमोहक होती जाती है।
वहीं 'हवा की शैतानी', पढ़कर होठों पर अनासाय ही मुस्कुराहट आ जाती है। 'सहजन', नामक निबंध में एक पंक्ति है," बाजार काम था, इसलिए सहेजने की इच्छा बहुत थी।“ इस छोटे से वाक्य में हम हमारे समाज के बदलते ढांचे का भूत,वर्तमान और भविष्य देख सकते हैं। 'इमली सबकी सुनता है' और 'गूगल मेरी अम्मा के विषय में कुछ नहीं बताता' - यह दो निबंध मनुष्य के मन:स्थिति और यादों में सने हुए से हैं। अकेलापन,खोने का डर,सपनों के लिए लड़ना... ऐसे भाव को बड़ी ही सरल और सीधे शब्दों में पाठक के सामने प्रस्तुत किया गया है। वही निबंध 'ख्वाब और तितली' पढ़ते हुए यह ख्याल आया कि 'बाँटना' कितना छोटा लेकिन सुन्दर गुण है। एक का गुण दूसरों को मिले तो वह और निखर जाता है, दुनिया जीने लायक बन जाती है। इस खूबसूरत किताब का आखिरी निबंध 'भूख की कहानियाँ', की एक पंक्ति है कि "भात के अलावा भूख और किसी चीज से नहीं बहलती"। छोटे से वाक्य में जीवन का सार है। सचमुच भूख सिर्फ और सिर्फ भात को पहचानती है और कुछ नहीं।
यह संग्रह सुंदर निबंधों, स्मृतियों और भावों का एक ऐसा अनूठा संयोजन है जो निश्चित रूप से किशोर और युवा पाठकों को आकर्षित करेगा।
समीक्षक - शिल्पा श्री, लेखिका एवं कथाकार
6 दिन पहले
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