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मीना कुमारी की शायरी में तन्हाईयां हैं, दर्द है और नाराज़गी है...

मीना कुमारी की शायरी में तन्हाईयां हैं, दर्द है और नाराज़गी है...
                
                                                         
                            बैजू बावरा, परिणीता, साहिब बीवी और ग़ुलाम और पाकीज़ा जैसी फ़िल्मों में अपनी अदाकारी से हिंदी सिनेमा की 'ट्रेजडी क्वीन' का ख़िताब पाने वाली अभिनेत्री मीना कुमारी असल ज़िंदगी में भी हमेशा ग़मों और तक्लीफ़ों से दो चार रहीं। सिनेमा के पर्दे पर जहां उन्होंने किरदारों के दुखों को जिया, तो वहीं अपने दर्द के इज़हार करने के लिए मीना कुमारी ने शायरी का सहारा लिया।
                                                                 
                            

मीना कुमारी का एक बहुत दिलचस्प पहलू है कि वे अभिनेत्री के अलावा एक शायरा (कवयित्री) भी थीं। मीना कुमारी की शायरी उनके 'ट्रेजडी क्वीन' होने के एहसास को और पुख़्ता करती हैं। उन्होंने अपनी शायरी में अपनी ज़िंदगी की तन्हाईयों को बख़ूबी बयां किया है। मीना कुमारी ने कभी नहीं चाहा कि उनकी नज़्में या ग़ज़लें कहीं छपें। हालांकि, उनकी मौत के बाद उनकी कुछ शायरी 'नाज़' के नाम से छपी। मीना कुमारी की शायरी को गुलज़ार ने 'तन्हा चाँद' के नाम से संकलित किया है - 

चांद तन्हा है आसमां तन्हा
दिल मिला है कहां कहां तन्हा

बुझ गई आस, छुप गया तारा
थरथराता रहा धुआं तन्हा

ज़िन्दगी क्या इसी को कहते हैं
जिस्म तन्हा है और जां तन्हा

हमसफ़र कोई गर मिले भी कभी
दोनों चलते रहें कहां तन्हा

जलती बुझती सी रौशनी के पर,
सिमटा सिमटा सा एक मकां तन्हा

राह देखा करेगा सदियों तक 
छोड़ जाएंगे ये जहां तन्हा 
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4 महीने पहले

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