वतन में पैदा हुए हर शख़्स के मन में उसके लिए एक जज़्बा और गर्व का भाव होता है। प्रत्येक व्यक्ति यह चाहता है कि वह कहीं न कहीं अपने देश के लिए कुछ कर सके, उसके लिए काम आ सके। इसी पर शायरों ने भी कुछ अल्फ़ाज़ यूं कहे हैं।
दिल से निकलेगी न मर कर भी वतन की उल्फ़त
मेरी मिट्टी से भी ख़ुशबू-ए-वफ़ा आएगी
- लाल चन्द फ़लक
बोझ उठाए हुए फिरती है हमारा अब तक
ऐ ज़मीं माँ तेरी ये उम्र तो आराम की थी
- परवीन शाकिर
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