मैं घूमूंगा केन किनारे
यों ही जैसे आज घूमता
लहर-लहर के साथ झूमता
सन्ध्या के प्रिय अधर चूमता
दुनिया के दुख-द्वन्द्व बिसारे
मैं घूमूंगा केन किनारे
अपने क्षेत्र की नदी के साथ घूमते हुए घूमते हुए यूं प्रकृति का चित्रण वही ह्र्दय कर सकता है जिसने उसकी जीवंतता को क़रीब से महसूस किया हो। जिसने अनुभव की हो किसी नदी के किनारे टहलने की शांति, लहरों का गायन, संध्या के साथ डूबते सूरज की सुंदरता। उस पर भी जो कवि अपने इलाके के नदी, पर्वत, सड़क आदि के बारे में लिखें तो मान लेना चाहिए कि वह अपनी मिट्टी में ख़ूब रचे-बसे हैं। एक ऐसे ही कवि हैं केदारनाथ अग्रवाल।
आगे पढ़ें
जन्म व परवरिश
कमेंट
कमेंट X