आपका गीतों से वास्ता है या नहीं है। आपकी साहित्य में बहुत अधिक रुचि है या नहीं है। चाहें आपको कविताएं सुनना भी ज़्यादा पसंद न हो लेकिन तब भी कुमार विश्वास का नाम आपने सुना ही होगा। आज के सबसे लोकप्रिय कवि जिन्होंने युवाओं को अपने गीतों पर झूमने को मजबूर कर दिया। जब वह किसी मंच से गाते हैं ‘कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है’ तो सारी भीड़ एक स्वर में इसे गुनगुनाती है। कुमार न सिर्फ़ सस्वर कविता पाठ करने वाले कवि बल्कि एक बेहतरीन वक्ता भी हैं जो घंटों तक श्रोताओं को खुद से जोड़े रखते हैं। उनकी कविताओं में सहजता की डोर है और वाणी में पवन का वेग। वे जानते हैं कि सुनने वालों को साहित्य के आसमान पर कैसे टिकाए रखा जा सकता है।
वे उन विरले कवियों में से एक हैं जो उर्दू मुशायरों में जाकर गर्व से हिंदी गीत गाते हैं और कहते हैं
‘ये उर्दू बज़्म है और मैं तो हिंदी मां का जाया हूं
ज़बानें मुल्क़ की बहनें हैं ये पैग़ाम लाया हूं
मुझे दुगुनी मुहब्बत से सुनो उर्दू ज़बां वालों
मैं हिंदी मां का बेटा हूँ, मैं घर मौसी के आया हूं’
10 फरवरी 1970 को बसंत पंचमी के दिन उत्तर प्रदेश के पिलखुवा में कुमार का जन्म हुआ था। वास्तविक नाम था विश्वास कुमार शर्मा जो बड़ी बहन के परामर्श के बाद कुमार विश्वास हो गया। अपने बहन-भाईयों में सबसे छोटे कुमार को बचपन से ही कविताएं लिखने का शौक था। जिसका मन कविताओं की शांति में लगा हो वह मशीन के शोर में कैसे रह सकता है। इसलिए इंजीनियरिंग की पढ़ाई बीच में छोड़ दी और हिंदी साहित्य का रास्ता पकड़ लिया। पढ़ाई पूरी होने के बाद 1994 में राजस्थान के लाला लाजपत राय कॉलेज में पढ़ाने लगे। लेकिन रौशनी किन्हीं सीमाओं में बंधकर नहीं रहती। कुमार जल्द ही हिंदी कविताओं के प्रतिनिधि के रूप में उभरने लगे।
कोई दीवाना कहता है, कोई पागल समझता है
मगर धरती की बेचैनी को बस बादल समझता है
मैं तुझसे दूर कैसा हूँ , तू मुझसे दूर कैसी है
ये तेरा दिल समझता है या मेरा दिल समझता है
ये उनके सबसे प्रसिद्ध गीत की चंद पंक्तियां हैं। इसे इतने सुना, गुनगुनाया और पसंद किया गया कि इसे युवाओं का ‘लव एंथम’ कहा जाने लगा। इसी शीर्षक से उनकी दूसरी किताब छपी ‘कोई दीवाना कहता है।’ इससे पहले किताब का नाम ‘एक पगली लड़की के बिन’ है। तीसरी किताब हाल ही में ‘फिर तेरी याद’ के नाम से आयी है।
कहते हैं कि साहित्य, कवि और राजनीति का बड़ा आपसी संबंध है। कुमार अछूते कैसे रह जाते, उन्होंने 2011 के अन्ना आंदोलन के समय अपनी सक्रिय भागीदारी दिखाई और उस आंदोलन की जनक आम आदमी पार्टी से जुड़ गए। लेकिन अपने कविधर्म और राजनीति पर वह कहते हैं कि
“सियासत में मेरा खोया या पाया हो नहीं सकता।
सृजन का बीज हूं मिट्टी में जाया हो नहीं सकता”
आज कुमार कविता के मंच के सबसे व्यस्ततम कवियों में से एक हैं। जिस मुहब्बत से उन्होंने श्रृंगार के गीत लिखे उतने ही गर्व से देश के सैनिकों के लिए लिखा। उन्होंने ‘तर्पण’ नाम की सीरीज़ से हिंदी कविता को घर-घर में लोकप्रिय कर दिया। उन्होंने 2018 की हिंदी फिल्म परमाणु: द स्टोरी ऑफ पोखरण के लिए एक गीत भी लिखा है।
पढ़ें उनकी लिखी कुछ कविताएं
मांग की सिंदूर रेखा
तुमसे ये पूछेगी कल
यूँ मुझे सर पर सजाने
का तुम्हे अधिकार क्या है
तुम कहोगी वो समर्पण
बचपना था तो कहेगी
गर वो सब कुछ बचपना था
तो कहो फिर प्यार क्या है
तुम अगर नहीं आई गीत गा न पाऊंगा
सांस साथ छोड़ेगी, सुर सजा न पाऊंगा
तान भावना की है शब्द-शब्द दर्पण है
बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
तुम बिना हथेली की हर लकीर प्यासी है
तीर पार कान्हा से दूर राधिका-सी है
रात की उदासी को याद संग खेला है
कुछ गलत ना कर बैठें मन बहुत अकेला है
औषधि चली आओ चोट का निमंत्रण है
बांसुरी चली आओ, होंठ का निमंत्रण है
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
दौलत ना अता करना मौला, शोहरत ना अता करना मौला
बस इतना अता करना चाहे जन्नत ना अता करना मौला
शम्मा-ए-वतन की लौ पर जब कुर्बान पतंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
बस एक सदा ही सुनें सदा बर्फ़ीली मस्त हवाओं में
बस एक दुआ ही उठे सदा जलते-तपते सेहराओं में
जीते-जी इसका मान रखें
मर कर मर्यादा याद रहे
हम रहें कभी ना रहें मगर
इसकी सज-धज आबाद रहे
जन-मन में उच्छल देश प्रेम का जलधि तरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
होठों पर गंगा हो, हाथों में तिरंगा हो
जिसकी धुन पर दुनिया नाचे, दिल ऐसा इकतारा है
जो हमको भी प्यारा है और, जो तुमको भी प्यारा है
झूम रही है सारी दुनिया, जबकि हमारे गीतों पर
तब कहती हो प्यार हुआ है, क्या अहसान तुम्हारा है
जो धरती से अम्बर जोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
जो शीशे से पत्थर तोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
कतरा कतरा सागर तक तो,जाती है हर उम्र मगर
बहता दरिया वापस मोड़े, उसका नाम मोहब्बत है
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एक वर्ष पहले
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