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मुझे मंटो पसंद नहीं हैं, क्योंकि वो इस समाज की कड़वी हक़ीक़त बयाँ करते हैं

manto
                
                                                         
                            मंटो को पहली बार पढ़ा था साल 2017 में। ये वही साल था जब मैं फिर से किताबों की ओर लौट रहा था। और चूंकि उस समय पठन पाठन का एक नया दौर शुरु हो रहा था, जिसमें सबसे अहम योगदान बहुत से उभरते हुए साहित्यकारों के अलावा सोशल मीडिया का भी था तो उसी दौरान मैंने मंटो का नाम सुना। मंटो का पूरा नाम क्या है यह जानने की तब कोई कोशिश नहीं की बस एक दिन लाइब्रेरी से "टोबा टेक सिंह और अन्य कहानियाँ" किताब हाथ लग गई और मैं उसे घर ले आया। सच कहूँ तो पहले पढ़ने पर कहानियाँ औसत ही लगीं। लेकिन धीरे-धीरे जब उनको समझना शुरु किया तो लगा क्या ये सब सच्ची कहानियाँ हैं? क्या ये सब सच में होता है? बस यही सोचते हुए में वो पूरी किताब पढ़ गया। ठंडा गोश्त, काली सलवार, हतक, टोबा टेक सिंह जैसी कहानियाँ आप ख़ुद को सवालिया निगाहों से देखने लगते हैं। और यही मंटो की ख़ासियत है कि वे आपको आप ही से सवाल करने को मजबूर करते हैं। मंटो केवल एक कहानीकार का नाम नहीं है मंटो उस सच्चाई का नाम है जिससे पीछे भागना हमारी आदत बन चुकी है।
                                                                
                
                
                 
                                    
                     
                                             
                                                
                                             
                                                
                                                                
                                        
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2 वर्ष पहले

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