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संसार अंदर मेरे

                
                                                         
                            है मुझमें जो प्यार, स्नेह, आनंद, सुकून, ज्ञान, या,
                                                                 
                            
नफ़रत, उदासी, दुख, व पूर्वाग्रह,
सब सौगात में मिला था, ज़िंदगी का बख्शा।

मैं नासमझ था, वक्त के साथ भागता रहा,
खूब बटोरा,
संभाला, दुलारा, संजोया।

अब वक्त दोस्त है मेरा,
समझ ने पकड़ा दिया है, अपने दामन का एक कोना,
वरदान है मिला, मर्ज़ी मेरी रखूँ क्या, क्या कर दूँ हवा।

अब मैं फ़िर से व्यस्त हो गया हूं, वक्त ने दिया है ताना,
समझ ने जाने क्योँ, दामन झटक लिया,
न समझें दुविधा, मशक्कत से कमाया, कैसे कर दूँ विदा।
-जगदीश
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4 दिन पहले

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