उदास चेहरा, खामोश आंखें,
कह रही हैं दास्ताँ कोई बिन लफ्ज़ों के।
बिखरे बाल, कांपते होंठ,
सहेज रहे हैं तूफ़ान दिल के अदब से।
हर मुस्कान के पीछे छुपी एक थकावट है,
हर नज़र में बसी कोई अधूरी सी चाहत है।
भीड़ में भी तन्हा सा लगता है चेहरा,
जैसे खो गया हो कोई अपना सहरा।
वो जो हँसता था बेफिक्र हवाओं सा,
आज बैठा है चुप, समय की छांव सा।
ना शिकवा, ना शिकायत, ना कोई सवाल,
बस आँखों में बहता है खामोश जलहाल।
कोई पढ़ ले अगर इस चुप्पी का मजमून,
तो जान जाए—ये उदासी नहीं, एक जुनून।
जो मुस्कुराने की रस्म निभा रहा है,
वो अंदर से खुद को मिटा रहा है।
-अजय गुमराह
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4 दिन पहले
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