मानव का भी समाज में
अलग अलग है स्वभाव
कोई तैर जाता नदी में
लोई ले चलता नाव
जैसी स्थिति की मांग हो
वैसा ही उठाओ कदम
परिस्थिति को पहचान लो
न होने पाए भ्रम
- कुँवर संदीप सिंह
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