चाहता हूँ करूँ बहुत कुछ
पर होता नहीं सबकुछ
जितना भी हो पाता है
करता हूँ वह कुछ कुछ
कुछ कुछ से ही सबकुछ
की ओर बढ़ा जाता है
एक एक सीढ़ी से होकर
ही छत पर चढ़ा जाता है
-कुँवर संदीप सिंह
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