आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

जीवन का मौन

                
                                                         
                            सत्य के एकाकी पथ पर,शेष बचा है कौन ?
                                                                 
                            
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन...

जीवन तो है सहज शब्द,हम पल-पल मरते रहते,
महाकाल के महाक्षणों की, नित प्रतीक्षा करते,
जीवन-मृत्यु के मध्य फिर,शेष बचा है कौन???
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन ....

लहू दे गया दगा आज,उजड़ा ईमान का काफ़िला
अपने घर में मैंने खोजा, मुझको 'मैं' न कहीं मिला,
अपने-बेगानों के मध्य फिर,शेष बचा है कौन ??
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन.....

सभ्य समाज का चिंतन मुखरित,मुख पर गहन उदासी
कोलाहल ये थम जाएँ तो,कह दूँ मन की बात जरा-सी
मन-मस्तिष्क के मध्य फिर,शेष बचा है कौन ????
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन.....

“मैं” और “मेरे” राग में,मेरा अपना स्वर ही खोया
दर्शाकर सब अपना-अपना,'मैं' अहंकार के घर सोया
अहम और गरिमा के मध्य फिर,शेष बचा है कौन??
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन....

जीवन है वन स्मृतियों का,शाख-शाख पर जीता है,
सपनों की पगडंडी थामें, मन अधीर भीतर रीता है,
स्वप्न औ’स्मृति के मध्य फिर,शेष बचा है कौन
केवल जीवन का मौन,
केवल जीवन का मौन....
-सुषमा गजापुरे
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
एक दिन पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर