ये मरहम, ये दवाएं रास नही आती।
बेवफा को, वफाएं रास नही आती।।
जलती हुई शम्मा कह रही है हमसे।
चिरागों को, हवाएं रास नही आती।।
खामोश रहकर ही करते हैं गुफ़्तगू।
उदासी को सदाएं रास नही आती।।
गम-ए-जुदाई का , करो अहतराम।
हिज्र को , अदाएं रास नही आती।।
-यूनुस खान
- हम उम्मीद करते हैं कि यह पाठक की स्वरचित रचना है। अपनी रचना भेजने के लिए यहां क्लिक करें।
कमेंट
कमेंट X