देश के हालात जो इन दिनों हैं, एक वायरस जिसने सिर्फ़ आवाजाही ही नहीं रोक दी है बल्कि लोगों को मजबूर कर दिया है कि वे अपने बीते समय का ब्यौरा लें।
यह वैश्विक आपदा जो इतनी तेज़ी से फैल रही है कि लोग अपने घरों में रहने को मजबूर हैं। सरकार की ओर से भी लगातार आग्रह किए जा रहा है कि बाहर न निकलें, पूरे देश को लॉकडाऊन कर दिया गया है। ऐसे में जब कहीं न कहीं ज़िंदगी ने एक मौका दिया है कि इस भागती-दौड़ती ज़िंदगी को एक री-स्टार्ट दिया जाए।
इसी संदर्भ में मुझे लाइफ़ इन ए मेट्रो का एक गाना याद आता है जिसे मैंने लंबे वक़्त तक अपनी प्ले-लिस्ट के सबसे ज़्यादा सुने गए गीतों में रखा था। उसमें ज़िंदगी का फ़लसफ़ा है- आसान लफ़्ज़ों में गहरी बात का अर्थ निहित है। उसे आज अगर ध्यान से बैठकर सुना जाए तो मन की कई परतें खुलती हैं।
गीत है ‘इन दिनों दिल मेरा’। पहले गीत का रिवायती परिचय दे दूं कि इसे सईद कादरी ने लिखा है, प्रीतम चक्रबर्ती का संगीत है और सोहम चक्रबर्ती ने इसे गाया है। इस बात का उल्लेख यहां ज़रूरी है कि संगीत, बोल और गायन के सटीक मेल से इसकी ख़ूबसूरती में कोई कमी न रही। इसके बोल आपको भीतर तक उतारते हैं जिसके लिए आपको गायक की आवाज़ का सहारा लेना पड़ता है तो संगीत आपको बाहर आने और भटक जाने से बचाए रखता है।
इन दिनों, दिल मेरा, मुझसे है कह रहा
तू ख्व़ाब सजा, तू जी ले ज़रा
है तुझे भी इजाज़त, कर ले तू भी मुहब्बत
ये दिन बड़ी मुश्किल से मिलते हैं, जब घर पर बैठकर अपनी ज़िंदगी के बारे में सोचा जा सकता है। ज़िंदगी ने आज तक तो सिर्फ़ ज़रूरतों के लिए दौ़ड़ाया है लेकिन आज ख़्वाब देखे जा सकते हैं। सालों बाद कुछ फ़ुर्सत मिली है कि ख़ुद से मुहब्बत की जा सके।
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