ज़िंदगी में वक़्त के कुछ हिस्से ऐसे भी होते हैं जब सिवाय अकेलेपन के कोई और आलिंगन को नहीं होता। परन्तु ये भी यूं ही नहीं मिलता; दुनिया के धोखे, अपनों का बिछोह, यारों की गद्दारी और दिल के टूटने के कितने ही जतन होते हैं तब इस आलिंगन का सामिप्य होता है।
क्या ही कमाल कि ज़िंदगी के असल रंग तो इन्हीं अंधेरों की घड़ी में दिखाई देते हैं, इसी आलिंगन में। तन्हाई के गले लगने पर ही तो महसूस होता है कि जीवन किन विषादों के क़रीब से होकर गुज़रा है। कितने लोग थे जिनके होने से आंखों की चमक ज़िंदा थी और वही लोग अब तमस में एक माचिस भी नहीं जला सकते। इसके सिवा और क्या हुआ राजू गाइड के साथ।
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