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रश्मिरथी का वह अंश जिसमें कृष्ण और कर्ण के बीच मार्मिक संवाद है, जरूर पढ़ें

साहित्य
                
                                                         
                            रश्मिरथी के तृतीय सर्ग के भाग- 5 और भाग- 6 में भगवान कृष्ण और कर्ण के मध्य अदभुत संवाद वर्णित है। पाठकों के लिए  प्रस्तुत है आज दोनों भागों से चुनिंदा अश- 
                                                                 
                            

भगवान सभा को छोड़ चले,

करके रण गर्जन घोर चले
सामने कर्ण सकुचाया सा,

आ मिला चकित भरमाया सा
हरि बड़े प्रेम से कर धर कर,

ले चढ़े उसे अपने रथ पर
रथ चला परस्पर बात चली,

शम-दम की टेढ़ी घात चली,
शीतल हो हरि ने कहा, "हाय,

अब शेष नहीं कोई उपाय
हो विवश हमें धनु धरना है,

क्षत्रिय समूह को मरना है
"मैंने कितना कुछ कहा नहीं?

विष-व्यंग कहाँ तक सहा नहीं?
पर, दुर्योधन मतवाला है,

कुछ नहीं समझने वाला है
चाहिए उसे बस रण केवल,

सारी धरती कि मरण केवल
"हे वीर ! तुम्हीं बोलो अकाम,

क्या वस्तु बड़ी थी पाँच ग्राम?
वह भी कौरव को भारी है,

मति गई मूढ़ की मारी है
दुर्योधन को बोधूं कैसे?

इस रण को अवरोधूं कैसे?
"सोचो क्या दृश्य विकट होगा,

रण में जब काल प्रकट होगा?
बाहर शोणित की तप्त धार,

भीतर विधवाओं की पुकार
निरशन, विषण्ण बिल्लाएंगे,

बच्चे अनाथ चिल्लायेंगे
"चिंता है, मैं क्या और करूं? आगे पढ़ें

2 वर्ष पहले

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