आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

नवीन सी चतुर्वेदी की ग़ज़ल: परबत बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर

उर्दू अदब
                
                                                         
                            परबत बाग़ बगीचे नदियाँ मेरे चारों ओर
                                                                 
                            
बिखरी पड़ी हैं कितनी ख़ुशियाँ मेरे चारों ओर

इन ही के हाथों में हैं जादू वाली छड़ियाँ
खेलती रहती हैं जो परियाँ मेरे चारों ओर

थकने से पहले ही मुझ में भर देती हैं जोश
 टिक-टिक टिक-टिक करती घड़ियाँ मेरे चारों ओर

इनके सपने पूरे हो जायें तो सो पाऊँ
 मह्वे-ख़ाब खड़ी हैं सदियाँ मेरे चारों ओर

ब्रज की गलियों में अक्सर यूँ लगता है जैसे
 नाच रही हों कृष्ण की सखियाँ मेरे चारों ओर

हमारे यूट्यूब चैनल को Subscribe करें। 

18 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर