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Urdu Poetry: रुकने का समय गुज़र गया है

उर्दू अदब
                
                                                         
                            रुकने का समय गुज़र गया है
                                                                 
                            
जाना तिरा अब ठहर गया है

रुख़्सत की घड़ी खड़ी है सर पर
दिल कोई दो-नीम कर गया है

मातम की फ़ज़ा है शहर-ए-दिल में
मुझ में कोई शख़्स मर गया है

बुझने को है फिर से चश्म-ए-नर्गिस
फिर ख़्वाब-ए-सबा बिखर गया है

बस एक निगाह की थी उस ने
सारा चेहरा निखर गया है

~ परवीन शाकिर

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4 घंटे पहले

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