अजीब जुल्म करती हैं तेरी यादें मुझ पर
सो जाऊं तो उठा देती हैं जाग जाऊँ तो रुला देती है
खतम हो गई कहानी, बस कुछ अल्फ़ाज़ बाकी हैं
एक अधूरे इश्क़ की एक मुकम्मल सी याद बाकी है
कोई उम्मीद नहीं थी हमें उनसे मुहब्बत की
एक ज़िद थी कि दिल टूटे तो सिर्फ उनके हाथ से टूटे
ये इश्क़ जिसके कहर से डरता है जमाना
कमबख़्त मेरे सब्र के टुकड़ों पर पला है
काश... एक ख्वाहिश पूरी हो इबादत के बगैर
वो आकर गले लगा ले, मेरी इजाजत के बगैर
तू होश में थी फिर भी हमें पहचान न पायी
एक हम हैं कि पी कर भी तेरा नाम लेते रहे
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