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Hasya Poetry: गोपालप्रसाद व्यास की कविता- तुम कहती हो कि नहाऊँ मैं!

हास्य
                
                                                         
                            तुम कहती हो कि नहाऊँ मैं!
                                                                 
                            
क्या मैंने ऐसे पाप किए,
जो इतना कष्ट उठाऊँ मैं?

क्या आत्म-शुद्धि के लिए?
नहीं, मैं वैसे ही हूँ स्वयं शुद्ध,
फिर क्यों इस राशन के युग में,
पानी बेकार बहाऊँ मैं?

यह तुम्हें नहीं मालूम
डालडा भी मुश्किल से मिलता है,
मैं वैसे ही पतला-दुबला
फिर नाहक मैल छुड़ाऊँ मैं?

औ' देह-शुद्धि तो भली आदमिन,
कपड़ों से हो जाती है!
ला कुरता नया निकाल
तुझे पहनाकर अभी दिखाऊँ मैं!

“मैं कहती हूँ कि जनम तुमने
बामन के घर में पाया क्यों?
वह पिता वैष्णव बनते हैं
उनका भी नाम लजाया क्यों?”

तो बामन बनने का मतलब है
सूली मुझे चढ़ा दोगी?
पूजा-पत्री तो दूर रही
उल्टी यह सख्त सजा दोगी?

बामन तो जलती भट्ठी है,
तप-तेज-रूप, बस अग्निपुंज!
क्या उसको नल के पानी से
ठंडा कर हाय बुझा दोगी?
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1 सप्ताह पहले

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