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जब दिल के दौरे में भी लफ़्ज़ों पर बहस करने लगे अज्ञेय...

Om thanvi remembers Agyeya
                
                                                         
                            

एक गंभीर साहित्यकार को शब्दों से बड़ा मोह होता है कि शब्दों के बिना साहित्य कैसा। लेकिन इससे भी ज़्यादा उनका संबंध शब्द के वास्तविक अर्थ से होता है। वे सदा ये ही चाहते हैं कि जहां जो बात कहनी है उसके लिए वही शब्द प्रयोग हो। 
लेकिन अगर कोई साहित्यकार डॉक्टर के यहां भर्ती हो, उसकी तबियत ख़राब हो। तब तो वह शब्द और उसके अर्थों पर जिरह नहीं करेगा, तब तो तबियत पहले है। लेकिन हिंदी के सुप्रसिद्ध कथाकार अज्ञेय ऐसे नहीं थे। वह तो ऐसे थे कि डॉक्टर ने कहा कि -  "अजीब मरीज है, दिल के दौरे में और मार्फ़िया के नशे में लफ़्ज़ों पर बहस करता है"।

इस पूरे वाक़ये को पत्रकार ओम थानवी ने अपने संस्मरण छायारूप में लिखा है। जाने क्या थी पूरी बात

अज्ञेय मुंहज़बानी यह किस्सा बताते हैं कि एक बार वह अस्पताल में भर्ती थे। मार्फ़िया का इंजेक्शन लगा था। नीम-बेहोशी में डॉक्टर की आवाज़ कान में पड़ी कि दर्द कैसा है?
जवाब दिया - बहुत है।
डॉक्टर ने फिर पूछा इंटॉलरेबल (असह्य) है?
अज्ञेय: सीवियर (तीखा) है।
डॉक्टर: क्या सहन नहीं होता?
अज्ञेय: 'कहा तो, डॉक्टर, कि सीवियर है। इंटालरेबल का मतलब है कि या तो चीखूँ-चिल्लाऊँ, या फिर बेहोश हो जाऊँ। आप देख रहे हैं कि होश में हूँ, और सह रहा हूँ।'

डॉक्टर को कोफ़्त हुई। बाहर जाकर बोले कि अजीब मरीज है, दिल के दौरे में और मार्फ़िया के नशे में लफ़्ज़ों पर बहस करता है।

किस्सा बयान कर अज्ञेय की टीप: 'क्यों न करूँ? इंटॉलरेबल, यानी जो सहा न जाय। सह तो रहा हूँ। भाषा के साथ आपका अन्याय भी तो सह ही रहा हूँ!'

4 वर्ष पहले

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