आप अपनी कविता सिर्फ अमर उजाला एप के माध्यम से ही भेज सकते हैं

बेहतर अनुभव के लिए एप का उपयोग करें

विज्ञापन

दाग़ देहलवी: मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल

dagh dehlvi famous ghazal mujh sa na de zamane ko parvardigar dil
                
                                                         
                            


मुझ सा न दे ज़माने को परवरदिगार दिल
आशुफ़्ता दिल फ़रेफ़्ता दिल बे-क़रार दिल

हर बार माँगती हैं नया चश्म-ए-यार दिल
इक दिल के किस तरह से बनाऊँ हज़ार दिल

मशहूर हो गई है ज़ियारत शहीद की
ख़ूँ-कुश्ता आरज़ू का बना है मज़ार दिल

ये सैद-गाह-ए-इश्क़ है ठहराइए निगाह
सय्याद-ए-मुज़्तरिब से न होगा शिकार दिल

तूफ़ान-ए-नूह भी हो तो मिल जाए ख़ाक में
अल्लाह रे ग़ुबार तिरा पुर ग़ुबार दिल

पूछा जो उस ने तालिब-ए-रोज़-ए-जज़ा है कौन
निकला मिरी ज़बान से बे-इख़्तियार दिल

करते हो अहद-ए-वस्ल तो इतना रहे ख़याल
पैमान से ज़ियादा है ना-पाएदार दिल

तासीर-ए-इश्क़ ये है तिरे अहद-ए-हुस्न में
मिट्टी का भी बनाएँ तो हो बे-क़रार दिल

उस की तलाश है कि नज़र आए आरज़ू
ज़ालिम ने रोज़ चाक किए हैं हज़ार दिल

आलम हुआ तमाम रहा उस को शौक़-ए-हूर
बरसाए आसमान से परवरदिगार दिल

पहले-पहल की चाह का कीजे न इम्तिहाँ
आना तो सीख ले अभी दो-चार बार दिल

निकले मिरी बग़ल से वो ऐसे तड़प के साथ
याद आ गया मुझे वहीं बे-इख़्तियार दिल

ऐ अंदलीब तुझ को लगे कब हवा-ए-इश्क़
कलियों की तरह तुझ में न फूटे हज़ार दिल

आशिक़ हुए वो जैसे अदू पर ये हाल है
रख कह के हाथ देखते हैं बार बार दिल

उस ने कहा है सब्र पड़ेगा रक़ीब का
ले और बे-क़रार हुआ बे-क़रार दिल

बेताब हो के बज़्म से उस की उठा दिया
ग़ाफ़िल मैं हूँ मगर है बहुत होश्यार दिल

मशहूर हैं सिकंदर ओ जम की निशानियाँ
ऐ 'दाग़' छोड़ जाएँगे हम यादगार दिल 

 

3 घंटे पहले

कमेंट

कमेंट X

😊अति सुंदर 😎बहुत खूब 👌अति उत्तम भाव 👍बहुत बढ़िया.. 🤩लाजवाब 🤩बेहतरीन 🙌क्या खूब कहा 😔बहुत मार्मिक 😀वाह! वाह! क्या बात है! 🤗शानदार 👌गजब 🙏छा गये आप 👏तालियां ✌शाबाश 😍जबरदस्त
विज्ञापन
X
बेहतर अनुभव के लिए
4.3
ब्राउज़र में ही

अब मिलेगी लेटेस्ट, ट्रेंडिंग और ब्रेकिंग न्यूज
आपके व्हाट्सएप पर