गले-बाज़ी के लिए मुल्क में मशहूर हैं हम
शेर कहने का सवाल आए तो मजबूर हैं हम
अपने अशआर समझने से भी म'अज़ूर हैं हम
फ़न से 'ग़ालिब' के बहुत दूर बहुत दूर हैं हम
अपनी शोहरत की अलग राह निकाली हम ने
किसी दीवाँ से ग़ज़ल कोई चुरा ली हम ने
सरक़ा-ए-फ़न पे सभी साहब-ए-फ़न झूम उठे
शेर ऐसे थे कि अर्बाब-ए-सुख़न झूम उठे
लाला-रुख़ झूम उठे शोला-बदन झूम उठे
शैख़-जी झूम उठे लाला-मदन झूम उठे
कल जो क़ाएम था हमारा वो भरम आज भी है
यानी अल्लाह का मख़्सूस करम आज भी है
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